[TOP] 21+ तानाशाही के खिलाफ शायरी | अन्याय के खिलाफ शायरी
जुल्म और तानाशाही कितनी भी कोशिश कर ले एक ना एक दिन जुल्म और तानाशाही के खिलाफ छोटी सी चिंगारी विकराल रूप धारण कर लेती है। सहने की भी एक सीमा होती है जब किसी रबड़ के दो सिरों को पकड़कर खींचते हैं तो जब ज्यादा जोर पड़ता है तो रबर टूट कर खींचने वाले को टूटते टूटते दर्द दे जाता है।
ठीक उसी प्रकार तानाशाही जब हद से बढ़ जाती है तो उसके खिलाफ उठती हर आवाज तानाशाही और जुल्म को गहरी चोट दी जाती है। इसी जुल्म और तानाशाही के खिलाफ हमने कुछ शायरी लिखने की कोशिश की है हमें उम्मीद है आपको पसंद आएगी आइए पढ़ते हैं जुल्म और तानाशाही के खिलाफ शायरी।
तानाशाही के खिलाफ शायरी | Tanashahi ke khilaf shayari | जुल्म के खिलाफ शायरी
नेताओं की नेतागिरी करनी होगी धराशाई
वर्ना नेताओं की चलती रहेगी तानाशाही
तानाशाही दिखाने वाले को
औकात उसकी दिखानी ही होगी
जो दिखाए बेमतलब की आंखें
उसको करके लाल आंखें दिखानी ही होगी
हर तानाशाही के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए
आवाज हो ऊंची इतनी कि
तानाशाही की ये दीवारें हिलनी चाहिए
तानाशाही के खिलाफ आवाज बुलंद होनी चाहिए
खोल कर बैठे हैं जो राजनीति की दुकानें
उन मक्कार नेताओं की दुकानें बंद होनी चाहिए
तानाशाही के खिलाफ नारे
तानाशाही के खिलाफ
बंदूक और हथियार बाद में उठाना
पहले तानाशाही के खिलाफ आवाज उठाना सीखो
बंद करो यह तानाशाही
जनता के संग धक्का शाही
आम जनता पर तानाशाही बंद होनी चाहिए
जो नेता करते हैं उन नेताओं की नेतागिरी दिन
चंद होनी चाहिए
गिरानी है दीवार तानाशाही की तो एक हो जाओ
झूठे और मक्कार नेताओं से सचेत हो जाओ
तानाशाही के खिलाफ शायरी
जुल्म और तानाशाही की हुकूमत चलने नहीं देंगे
किसी बेगुनाह की झोपड़ी हम चलने नहीं देंगे
कान खोल कर सुन लें बिरयानी और कबाब खाने वालों
दाल तुम्हारी हम गलने नहीं देंगे
वो कलम ही क्या
जो तानाशाही के ख़िलाफ़ ना लिखे सके
वो ऊंची अदालत ही क्या
जो ज़ुल्म का इंसाफ़ ना लिख सकते
तानाशाही के खिलाफ नारे
उठेगी आवाज़ जब एक स्वर में
ख़ुद आकर वो घुटने टेकेंगे
तानाशाहों की तानाशाही में
कितनी ताक़त है देखेंगे
Tanashahi ke khilaf shayari
बेदर्द हुकूमत को बेदखल,
जनता का राज लिख देंगे
साथ दिया अगर देश की आबोहवा ने तो
तानाशाही का अंत,
इंकलाब का आगाज़ लिख देंगे
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राजनीति का मतलब तानाशाही हो गया है
संसद का हर एक कोना
नेताओं के जुल्मो की गवाही हो गया है
तानाशाही के ख़िलाफ़ जब युवा सड़कों पर उतरते हैं
तब सिंहासन हो या संसद दोनों थरथर करते हैं
Tanashahi ke khilaf nare shayari
तानाशाहों के ख़िलाफ़ अगर आवाज ना उठी
तो दुनिया कभी भी ख़ाक हो सकती है
अगर इन सनकी और निर्दयीयों की उंगलियाँ ना टूटी
तो परमाणु हथियारों की नोक कभी भी दब सकती है
तानाशाही के खिलाफ नारे
तख्त हिला दो सिंहासन हिला दो
तानाशाही के खिलाफ एकजुट होकर
इन दमनकारी काले अंग्रेजों का शासन हिला दो
आंख से निकला एक आंसू भी सैलाब बन जाएगा
ज़ुल्म और तानाशाही के खिलाफ तेजाब बन जाएगा
होश में आ जाओ तानाशाह हुक्मरानों वर्ना
सिंहासन पर बैठने का ख्वाब तुम्हारा ख़्वाब बन जाएगा
तानाशाही के खिलाफ शायरी
नेता मतलब
सियासत, ज़ुल्म और तानाशाही
वादे इनके मतलब
झूठ, फरेब और हवा हवाई
नेताओं की तानाशाही अब सरेआम हो गई है
ग़रीबों पर ज़ुल्म की दास्तान आम हो गई है
खोट तो नेताओं की नियत में है
ये सियासत तो बेमतलब बदनाम हो गई है
तानाशाही का गला घोंटना ही होगा
ज़ुल्म के ख़िलाफ़ ख़ुद को झोंकना ही होगा
कोई कह दो सियासत के ठेकेदारों से कि सुधर जाएं
वर्ना अकड़ को इनकी सरेआम ठोकना ही होगा
दीवार गिरा देंगे जुल्म का पहाड़ ढहा देंगे
दमनकारी शासन का किला उजाड़ देंगे
होश में अगर ना आई मुल्क ए सियासत तो
तानाशाही के खिलाफ हम अकेले ही दहाड़ देंगे
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